गुप्त रोगों से बचने के लिए इन निर्देशों का पालन करें
कामशक्ति वर्धक कोई दवा खाली पेट ना लें। दवा से पूर्व बिस्कुट आदि अवश्य खा लें। खाली पेट दवा खाने से आँतों को हानि पहुँचती है।
जिन दवाओं पर आपको विश्वाश ना हो, उन दवाओं का सेवन ना करें।
यकृत तथा वृक्क की बिमारी में हल्की दवा लेनी चाहिए। तेज दवाएं व्यक्ति को उस समय आराम पहुंचाती हैं लेकिन बाद में कई रोग हो जाते हैं।
विषैली दवाएं युवा व्यक्तिओं में उन्माद,स्नायु रोग,उदर विकार, श्रय रोग तथा नपुंसकता आदि उत्पन्न कर सकती हैं।
40 वर्ष से पहले सेक्स वृद्धि करने वाली औषधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्तम्भन शक्ति को बनावटी साधनों से बढ़ाना घातक होता है।
अफीम, गांजा, मदिरा या अन्य मादक पदार्थों का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। ये पदार्थ प्रारम्भ में थोड़ी शक्ति प्रदान करते हैं लेकिन 40 वर्ष की आयु में मनुष्य को बिलकुल ढीला बना देते हैं।
एक ही रात्रि में एक से अधिक बार सहवास करना ठीक नहीं है। इस क्रिया से शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।
रात्रि भोजन के कम से कम 2 घंटे बाद स्त्री-सहवास का विधान है। इससे पूर्व मैथुन करना रोगों को निमंत्रण देना है।
पत्नी के साथ संपूर्ण रात एक ही बिस्तर पर चिपटकर सोना, नग्नावस्था में पड़े रहना या जागते हुए स्त्री से छेड़छाड़ करते रहना अत्यधिक हानिकारक है। इससे उदर तथा मस्तिष्क के रोग हो जाते हैं।
गुप्तांग के बाल 15 दिनों में 1 बार अवश्य साफ़ करने चाहिए। पुरुषों के लिए हेयर रिमूवर से बाल साफ़ करने हानिकारक हैं। स्त्रियों को हेयर रिमूवर से बाल साफ़ करना ठीक रहता है।
स्त्री को अपने ऊपर लेटाकर सहवास करना हानिकारक है। इससे पेट में सूजन, मूत्राशय की सूजन, यकृत की खराबी, आँतों के रोग, सूजाक, पाचन क्रिया की गड़बड़ी और नपुंसकता आदि रोग हो सकते हैं। यदि इस दशा में स्त्री गर्भवती हो जाये तो बच्चा दुर्बल तथा रोगी होता है।
खड़े होकर भी स्त्री के साथ मैथुन नहीं करना चाहिए। इससे वृक्कों की कमजोरी, शिश्न की नशों में ढीलापन, कामशक्ति का अभाव, पिण्डलियों, टांगों तथा नितम्बों में दर्द, हाथ-पांव में कम्पन तथा उपदंश रोग हो जाता है।
स्त्री की योनि देखना, हर समय शिश्न खुजलाना, अत्यधिक घुड़सवारी करना अथवा साईकिल चलाना, हर समय नंगे पैर घूमना, पत्थर पर देर तक बैठे रहना अधिक देर तक चुम्बन लेना तथा स्त्री को भुजाओं में भरकर सुलाना आदि बहुत हानिकारक है। ये सभी क्रियाएं कामशक्ति नष्ट कर देती हैं।
करवट के बल लेटकर भी रति क्रिया नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने पर शिश्न से पूर्ण रूप से वीर्यपात नहीं हो पाता। वह शिश्न की वीर्यनली में चिपक जाता है जो बाद में लंगड़ी का दर्द, वृक्क्शूल, शिश्न तथा मूत्राशय की सूजन या घाव आदि उत्पन्न कर देता है।
ल्यूकोरिया की रोगिणी से सहवास नहीं चाहिए सहवास करने के पश्चात तुरंत मूत्र त्याग करना चाहिए।
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