Anmol Vachan | Anmol Vachan in Hindi Free | Anmol Vachan in Hindi Massage

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Anmol Vachan | Anmol Vachan in Hindi Free | Anmol Vachan in Hindi Massage
Anmol Vachan




|| Anmol Vachan ||


शरीर परमातमा से मिला हुआ एक साधन है.

जो हमें परमात्मा से जोड़ देता है.

रोज सुबह उठकर यह चिंतन करें.

हम शरीर नहीं आत्मा हैं.

आनंदस्वरूप सच्चिदानंद परमात्मा है.

जहां-जहां शरीर आशक्त है वहां से अपने मन को दूर कर दें.

अनाशक्त व्यक्ति ही भगवान् को पा सकता है.

सदेव ईश्वर चिंतन परोपकार एवं आत्मस्वरूप में स्थित होने का विचार करते रहें.

शरीर को भगवान् को अर्पण कर दो.

अब इसके भूंख प्यास दुःख आदि धर्मों से मेरा क्या.

अर्पण की हुई वास्तु में आशक्त होना महापाप है.

शरीर अस्थिर है, अनित्य है, मिथ्या है, जो सदा नहीं रहता, फिर भला उसका चिंतन क्यूँ करना.

जो प्रभु सदा है उसी का चिंतन करो.

सदा रहने वाले प्रभु ही चिंतन करने योग्य हैं.

अपने शरीर के रोम, रोम से ॐ ॐ ॐ का उच्चारण करते रहो.

शरीर सदा साथ नहीं रहता.

केवल इश्वर ही सदा अपने साथ रहता है.

शरीर सदा एक जैसा नहीं रहता, वह हमेशा बदलता रहता है.

ना बदलने वाली आत्मां में ही मन लगाना, सच्ची समाधी है.

शरीर पंचतत्वों से बना है, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश.

मरने के बाद पंचतत्वों में ही मिल जाएगा.

इस शरीर को काठ और लोहे के सामान जड़ जानना, बस केवल इतने ही ज्ञान मात्र से सबके स्वामी ब्रह्मा का बोध हो जाएगा.


|| चार बातें याद रखना Anmol Vachan ||

1. शरीर में आशक्ति नहीं रखना

2. शरीर को भगवान् की माया समझना

3. शरीर के सदुपयोग से भगवान् का अनुभव करना

4. शरीर को बदलने वाला जानना



|| Anmol Vachan in Hindi Free ||


जब जब शरीर का चिंतन करोगे तब-तब आप भगवान् के चिंतन से वंचित रह जाओगे.

साहस दिखाओ प्रभु का चिंतन करो.

शरीर के रोगों का चिंतन ना करो, चाहें कितने भी गहरे हों.

रोगों की चिंता तुम्हे और चोट पहुंचाएगी.

रोगों की चिंता छोड़ दो.

प्रभु का चिंतन शुरू कर दो.

फिर देखना कमाल.

में आत्मां का रूप हूँ , मुझमें जन्म कहाँ और मरण कहाँ, जन्म मरण तो शरीर का होता है.

एक आत्मां ही अमर है.

शरीर अनेक हैं आत्मां एक है.



|| Anmol Vachan Shayari ||


पड़ा रहेगा माल खजाना
छोड़ सबकुछ जाना है,

कर सुमिरन हरी का प्यारे
नहीं तो फिर पछताना है,

खिला-पिलाकर देह बड़ाई
इसे भी अग्नि में जल जाना है,

कर सुमिरन प्रभु का प्यारे
नहीं तो फिर पछताना है..


शरीर के रोग मिट जाने के बाद भी एक दिन तो यह शरीर जलकर ख़ाक में मिल ही जाएगा.

शरीर की मृत्यु के  लिए सदेव तैयार रहना ही परमसुख की कुंजी है.

मौत मेरी नहीं शरीर की होती है ऐसा हर पल हर छण सोचें.

शरीर के कष्टों रोगों को भूलकर ईश्वर के आनन्द का अनुभव करो.

फिर तुम्हारे जीवन में कोई दुःख नही आ सकता.

हम शरीर के दुःख को ग्रहण करते हैं, इससे वह और दुःख देता है.

ग्रहण करना छोड़ दो फिर तुम्हे कोई दुःख नहीं छु सकता.

शरीर असत्य जड और दुख्स्वरूप है.

शरीर पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा, लेकिन हम पहले भी थे, बाद में भी रहेंगे.

कहो,

शरीर असत्य, में सत हूँ.

शरीर जड़, में चेतन हूँ.

शरीर दुख्स्वरूप, में आनंदस्वरूप हूँ.


शरीर चिंतन करने योग्य नहीं,
चिंतन करने योग्य केवल परमात्मा है.

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

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